Tuesday, October 25, 2011

पुष्करणा ब्राहम्णों का इतिहास व जाति संगठन

लेखक पाली-मारवाड़ निवासी
श्री मीठा लाल व्यास


ज्ञाति वृतान्त जानने की आवश्यकता-
आत्मनों ज्ञाति वृत्तान्त, यो न जानाति ब्राहम्णः।
ज्ञातीनां समवायार्थ,पृष्टः सन्मूक तां व्रजेत्ं ।।

यदि कोई भी ब्राहम्ण अपनी ज्ञाति का वृतान्त न जानता हो, तो उससे जब कभी ज्ञाति सम्बन्घी कोई भी बात पूछी जावे तो उसको लज्जित होकर मूकवत (चुप) हो जाना पड़ता है। अतः प्रत्येक को अपनी-अपनी ज्ञाति के प्राचीन ऐतिहासिक वृतान्तों से जानकार होना चाहिए।

मनुष्यों की उत्पति -

ब्राहम्णोंस्यों मुखामासोदबाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्रेश्यः, पद्भ्या्् शूद्रों अजायत ।।

सष्टिकर्त्ता ब्रहमा के मुख से तो ब्राहम्ण, भुजा से क्षत्रिय, ऊरू (जंघा) से वैश्य और पैर से शुद्र उत्पन्न हुये। यही बात मनुस्मृति के प्रथमाध्याय के 31 वे श्लोक मंे, तथाा ऐसा ही वर्णन भागवत पुराण आदि मंे भी है।

मनुष्यों के चार वर्ण -

ब्रामम्णों , क्षत्रियोंे, वैश्यस्त्रयोवर्णा द्धिजासयः।
चतुर्थ एक जातिस्तु, शुद्रों, नास्ति तु पंचमः ।।

मनुष्यां ेमंे गुण, कर्म, स्वाभावानुसार (1) ब्राहम्ण (2) क्षत्रिय (3) वैश्य और (4) शुद्र
ये - चार ही वर्ण माने गये है। इनमंे शूद्र को छोड़कर प्रथम तीन द्विज वा द्विजाति कहलाते है, क्योंकि उपनयन संस्कार द्वारा इनका दूसरा जन्म माना गया है। इनके अतिरिक्त पांॅचवा वर्ण कोई नहीं है।

सम्पूर्ण ब्राहम्णों को एक समुदाय -

सृष्टयारम्भे ब्राहम्णानां, जातिरेका प्रकीर्तिता ।

सृष्टि के प्रारम्भव मंे तो ब्राहम्णों का एक ही समुदाय था, इस समय की भॉति जाति भेद कुछ भी नहीं था, किन्तु केवल गोत्र प्रवर-वेद-शाखा-आदि मात्र से पहचाने जाने का व्यवहार था।

ब्राहम्णों की दो सम्प्रदायें -

ततः कालान्तरें तेंषां, देशाद्भेदोद्विधाभवत

फिर बहुत समय पीछे वे लोग दूर-दूर जा बसे, उनमंे जो विन्ध्याचल के उत्तरथ गौड़ देश मंे जा बसे तो वे गौड़ कहलाने लगें, और जोे विन्ध्याचल के दक्षिण द्रविड़ देश मंे जा बसे वे द्राविड़ कहलाये। इसी प्रकार उनकी उत्तरी और दक्षिणी दो सम्प्रदाये बन गई

पुष्करणा जाति संगठन का संक्षिप्त वृतान्त -

श्रीमाल पुराण का ऐतिहासिक दृष्टि से निरीक्षण करने से विदित होता ळै कि पूर्वकाल मंे भिन्न-भिन्न गोत्रांे मंेे ब्राहम्णों मंे से 14 गोत्र के ब्राहम्ण सैन्धवारण्य(सिन्ध देश) मंे भी निवास करते थें। वे उस देश के राजाओं के पुरोहित होने से सिन्ध की प्राचीन राजधानि ‘ओलोर‘ वा ‘ओरोर‘ नगरी मे विशेष संख्या मंे रहते थें। उन ब्राहम्णें ने अपने समूह के उपयोगी और देश के अनुकूल हो वैंसे नियम बनाकर अपने समूह की मर्यादा नियत कर ली थी। फिर वे ही ब्राहम्ण कालान्तर मंे ‘भीनमाल(श्रीमाल) मंे चले गये थें। किन्तु वहॉ के ब्राहम्णों के मत के साथ अपना मत न मिलने से वहॉ अधिक समय तक न ठहर कर पीछे लौट आये और देश कालनुसार पुराने नियमों मंे कुछ संशोधन करके अपी जाति मर्यादा फिर स्थिर कर ली थी। तभी से हमारी जाति का संगठन हुआ।
पुष्करणा जाति का पंचद्राविड़ों मंे से गुर्जर ब्राहम्णों की एक शाखा होना-
इनके पुर्वक पुर्वकाल मंे सैन्घवारण्य(सिन्ध देश) मंे रहते थें। फिर वहॉ से श्रीमाल नगर मंे आ गये थें, और श्रीमाल नगर गुजरात मंे होने से वहॉं के ब्राहमणों की ‘श्रीमाली‘ ‘पुष्करणा‘ आदि जातियों मंे भी गुर्जर ब्राहमणों की शाखाये मानी गई थी।
पुष्करणों के पुर्वजों को कालान्तर मंे मारवाड़ आदि निर्जल प्रदेशों मंे अधिक समय तक निवास करने, तथा राजभक्त शुभचिन्तक होने से मुसलमानी अत्याचार के समय अपने-अपने यजमान व स्वामी महाराजाओं के साथ जहॉ तहॉ भटकते फिरते रहीने आदि से उनके आचार विचार कुछ शिथिलता हो गई है। तथापि इनका आचार विचार तथा खान पान आदि सदा से प्रायः द्राविड सम्प्रदाय ही के अनुकूल अब तक चला आया है। उदाहरण स्वरूप ये न तो लहसून,पलाण्डु गुजन आदि अभक्ष्य का भक्षण करते है और न हुक्का बीड़ी आदि अपेेेेेेय का पान करते है।
‘ब्राहम्ण निर्णय‘ नामक पुस्तक के पृष्ठ 382 मंे लिखा है कि हमने अपने नेत्रों से देखा है कि पुष्करणें ब्राहम्णें खान-पान से बड़े पवित्र होते है।
ऐतिहासिक विद्वानों ने भी पुष्करणों की गणना द्राविड़ों मंे के गुर्जर ब्राहम्णों मंे की है। उनमंे से दो एक सज्जनों का उल्लेख हम यहॉ पर कर देते है।
जाति विषयक विद्वान श्रीयुत पाण्डोबा गोपालजी ने अपनी पुस्तक के पृृष्ठ संख्या 100 मंे, जहॉं गुर्जर ब्राहम्णों की 84 जातियों की गणना की है, वहॉ छठी संख्या पर पोकरणें (पुष्करणे) ब्राहमणों का भी नाम लिखा गया है।
ऐसे ही पादरी रेवण्ड शैरिंग साहब एम.ए.एल.एल.बी. ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दूकाट्स‘ के पृृष्ठ 77 मंे पुष्करणे ब्राहमणों की गणना पश्चद्राविडान्तर्गत ब्राहम्णों मंे की है।
इसी प्रकार भारतम सरकार ने सन् 1901 की मनुष्य गणना की पच्चीसबी जिल्द ‘राजपुताना सर्किल की रिपोर्ट के पृष्ठ 146 मंे लिखा है।
ष्ज्ीम चनेीांतदंे ंतम ं ेमबजपवद व िजीम हनतरंत इतंीउंदष्ष्
अर्थात पुष्करणे ब्राहमण ‘गुर्जर‘ ब्राहम्णों का एक भेद है। फिर भी उसी पुस्तक के पृष्ठ 164 मंे गुर्जर ब्राहम्णों की नामावली मंे भी पुष्करणंें ब्रहमणो की गणना की है।
अहमदाबाद आदि गुजरात प्रान्त मंे सम्पूर्ण ब्राहम्णों की चौरासी को भोजन कराने की पुरानी प्रथा अब तक चली आती है। जब कभी वहॉ ऐसा भोजन होता है तो उस भोजन मे पुष्करणे ब्राहमण भी निमन्त्रित किये जाने है और वे उस भोज मंे सम्मिलित होते है।
पुष्करणा जाति का श्रीमाली जाति के साथ निकट संबंध-
पुष्करणा और श्रीमाली से दोनो ही जातिया पंच द्राविडों मंे से गुर्जर ब्राहमणों की एक शाखा के अन्तर्गत है। इन दोनों के आचार-विचार मंे देशकाल के कारण कुछ-कुछ विभिन्नता हो गई है। तथापि इन दोनों का मूल आचार द्राविड साम्प्रदाय ही के अनुकूल सदा से चला आया है। इन दोनों मंे 14-14 छकडियों के 84-84 उपनाम है उनमंे से कितने एक उपनाम भ्ज्ञी एक ही है। (जैसे-गोदा,नवलखा,ठक्कुर,कपिजल,पुच्छतोडा,गौतमीया,प्रमणेचाा,जीवणेचाा,इत्यादि)इसकेक अतिरिक्त इन दोनों के गोत्र भी एक ही है अर्थात जिन 14 ऋषियांे के नाम 14 गोत्र पुष्करणें मंे है,उन्ही 14 ऋषियों के नाम 14 गोत्र श्रीमालियांे मंे भी है। इत्यादि बातों के देखने से इन दोनो के पूर्वजों का परस्पर अति निकट संबंध होना तो सिद्ध होता ही है,किन्तु श्रीमाली ब्राहमणों तो यहॉ तक मानते है कि ये दोनों मूल समुदाय (जाति) मंे से दो विभाग होकर हुए है। स्कन्द पुराणन्तर्गत श्रीमाल महात्म्य की एक पुस्तक ‘श्रीमाल पुराण‘ के नाम से गुजराती भाषा टीका सहित पं. जटाशंकर लीलाधर जी तथा पं. केशव जी विश्वनाथ जी नामक श्रीमाली सज्जनों ने सं.1955 मंे अहमदाबाद से प्रकाशित की है। उस पुस्तक के परिशिष्ट मे दिये हुए संक्षिप्त इतिहास के अन्तर्गत पृष्ठ संख्या 782 मंे श्रीमाली मांथी पडे़ला बीजा विभागों के नाम शीर्षक के नीचे उक्त प्रकाशकों इस प्रकार लिखा है कि -
‘‘ पुष्करणा-श्रीमाली मांथी-5000 पुष्करणा यथा कहवायछे जे सिंध देशाना ब्राहमणों गोतमनीर पूजा करवानी ना पाडवाथी पाछा सिंघ देष मां गया ते ओ सिंध पुष्करणा कहेवाया,बाकी ना पुष्करणाओं जोधपुरमां रहां तथा केटलाक गुजरात काठीयावाड तथा कच्छमां आवीने वस्रूा, पोकरणाओं पुष्करणा नो अपभंश शब्दछे।‘‘
(अक्षर गुजराती)
श्रीमाली ब्राहमणों के इस कथन की पुष्टि उपरोक्त श्रीमाल महात्म्य मंे के वर्णित इन दोनो जातियों के पूर्वजों के विस्तृत वृृतान्तों के मिलने से भी होती है।
श्रीमाल पुराण के प्रकाशन मंे अपूर्णता-
पुष्करणा ब्राहमणों के पूवजों (सैन्धवारण्य के ब्राहमणों )का तथा श्रीमाली ब्राहमणों के पूर्वजों का वृतान्त स्कन्द पुराणान्तर्गत ‘श्रीमाल माहात्म्य के विस्तार से लिखा हुआ है, उसी मंे से उद््धृत पुष्करणंे ब्राहमणों के पूर्वजांें से संबंध रखने वाले वृतान्तों का संग्रह रूप ‘पुष्करणोपाख्यान‘ नामक एक प्राचीन पुस्तक है। उक्त श्रीमाल महात्म्य के अध्यायों की संख्या 103 होना सदा से सुनने मंे चला आया है। किन्तु इधर उसी महात्म्य की पूर्व प्रकराणोक्त ‘श्रीमाल पुराण‘ नाम से प्रकाशित पुस्तक मंे केवल 75 ही अध्याय हइसे गये है। उस पुस्तक मंे पुष्करणें ब्राहमणों से संबंध रखने वाले कितने ही श्लोक देखने मंे नहीं आये, यहॉ तक कि श्रीमाल क्षेत्र मंे भृगु ऋषि की कन्या श्री लक्ष्मी जी का श्री भगवान के साथ विवाह हाने के उपलक्ष्य मे श्रीमाल

8 comments:

  1. पण्डित मीठालाल व्यास जी की पुस्तक कहाँ मिल सकती है ?

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    1. ये पुस्तक ऑनलाइन पीडीएफ में उपलब्ध है, आप डाउनलोड कर सकते है। यदि वहां आपको परेशानी हो तो आप मुझसे संपर्क करें - 9571247052 योगेश गज्जा, जोधपुर।

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  2. Mera parichayMe pushkarna yogesh acharya sh.chmalal acharya ke parivar see hun me pad dada sh chmpa Lal g acharya jinko darbar see MALVIYAki upadhadi see Samantha Kiya Gaya tha
    Kintu durbhagya se pushkarna samaj ne unko bhula Diya ese mahan atma ko me nitya prti yad karta Hoon .

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  3. Sri mali puran mahtmy kanha milegi so hame marg batay, so thank you

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  4. Pushkarne me Bhardwaj me aacharya ka Kya prayer hai

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  5. PUSHKARNA ME ANGRAS GOTRA KE KULDAVI KON HAI



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